कपड़ों की महिमा

जैसे ही इंसान संसार में आता है उसके तन को ढकने के लिए कपड़ों की आवश्यकता पड़ती है । उसको कपड़ों से ढक दिया जाता है और फिर शुरू होता है कपड़ों का एक लंबा सिलसिला जो उसके संसार में आने से लेकर जाने तक लगातार उसके साथ रहता है। कपड़े हमारी जिंदगी की एक अहम आवश्यकता हैं । यह सच है की हर इंसान को वो चाहे अमीर हो या गरीब, चाहे स्त्री हो, पुरुष हो, बालक हो बुजुर्ग हो सभी को तन ढकने के लिए कपड़ों की आवश्यकता होती है ।  

गरीब के पास कम कपड़े हो सकते हैं लेकिन जैसे जैसे गरीब अमीरी की और बढ़ता है उसके कपड़ों की संख्या बढ़ती चली जाती है । अमूमन अमीरों के पास आवश्यकता से कहीं ज्यादा कपड़े होते हैं । घर के कपड़े, पार्टी के कपड़े, ऑफिस के कपड़े, शादी-ब्याह, उत्सव के कपड़े, न जाने किस किसके कितने कपड़े । इंसान की सुंदर और प्रभावी दिखने की इच्छा के कारण उसे नित नए वस्त्रों की तलाश होती है और यह इच्छा महिलाओं के केस में ज्यादा प्रभावी होती है । बाजार तरह तरह के कपड़ों से अटे पड़े हैं । हर रंग के, हर डिजाइन के, हर गुणवत्ता के, हर मौसम के, बच्चों के, बड़ों के, अंदर के, बाहर के, सस्ते, महंगे, नाना प्रकार के कपड़ों के बाज़ार सजे पड़े हैं ।

आम से लेकर खास तक अमूमन सब के पास अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक घरों में कपड़ों के ढेर लगे हुए हैं । बॉलीवुड स्टार्स और दूसरे सेलिब्रिटीज के पास उपलब्ध कपड़ों का अनुमान लगाना मुश्किल है । वो शायद ही एक बार पहने हुए कपड़ों को दुबारा इस्तेमाल करते होंगे और कई तो ऐसे होंगे जिनके पास हर दिन/अवसर का एक नया कपड़ा होता होगा ।

घरों में देखा जाए तो अलमारियों में कपड़े ही कपड़े भरे होते हैं । इस तरह के कपड़े, उस तरह के कपड़े, हर रंग के कपड़े, रेशमी-सूती- ऊनी कपड़े, अलग-अलग अवसर के, हर सदस्य के न जाने कितने कपड़े । अलमारियां, संदूकें कपड़ों से अटे पड़े हैं लेकिन फिर भी यह समस्या आम है की कपड़े नहीं हैं । जब भी कहीं आना जाना हो तो जेहन में सबसे पहले कपड़ों का ही ख्याल आता है । अमूमन लोगों को कपड़ों की हमेशा कमी महसूस होती है । हर किसी को लगता है की उसके पास कपड़ा नहीं है और वो जिंदगी भर कपड़ों के पीछे दौड़ता रहता है हर बार वह नया कपड़ा खरीदना है उसको लगता है की बहुत अच्छा कपड़ा है लेकिन फिर थोड़े दिनों बाद में उसको लगता है कि नहीं यह नहीं है इससे अच्छा कपड़ा मेरे को चाहिए । अच्छे और सुंदर कपड़ों की इसी मृगतृष्णा में इंसान जिंदगी भर अंधी दौड़ दौड़ाता रहता है ।

अवसर के हिसाब से कपड़ा पहनाना आजकल का रिवाज़ है । शादियों में भी हल्दी के, मेहंदी के, बारात के और थीम आधारित कपड़ों का चलन हो गया है । ऐसा नहीं कि यह समस्या सिर्फ मध्यम वर्ग ही महसूस करता है वरन बड़े बड़े अमीर या उच्च वर्ग के लोग व सेलिब्रिटीज भी इस समस्या से ग्रस्त हैं । कपड़ों  की समस्या एक बड़ी गंभीर समस्या है जिससे हर कोई प्रभावित है । परिवार में कब क्या पहनाना है क्या नहीं, किसको क्या जचंता है क्या नहीं, किसको क्या पसंद है क्या नहीं, यह भी एक गंभीर मनन का विषय होता है और कभी कभी दिखावे की होड़ में यह सामाजिक/ पारिवारिक विवाद व मानसिक क्लेश का कारण भी बन जाता है ।

इस विषय की गंभीरता अमीरों व सेलिब्रिटीज में ज्यादा होती है उनको तो यह काम महंगे ड्रेस डिजाइनर्स पर छोड़ना पड़ता है ताकि कपड़ों के चुनाव में कहीं कोई कमी ना रह जाए ।

कपड़ों के पीछे सारा संसार दीवाना है । नाना भांति के कपड़े होते हुए भी किसी को संतोष नहीं है। नया से नया, बढ़िया से बढ़िया की चाह कभी समाप्त नहीं होती और जीवन पर्यन्त चलती रही है । स्त्रियां इस असंतोष से ज्यादा ग्रसित रहती हैं । जहां पुरुषों के लिए वस्त्रों की चॉइस सीमित हैं वहीं स्त्रियों के लिए ऑप्शंस असीमित। दिखावे व दूसरों से तुलना के चलते यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।

आर्थिक विकास के साथ यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। बाजार में विभिन्न प्रकार के कपड़ों की बाढ़ सी आ गई है । कम से कम तन को ढकने वाले कपड़े, फटे हुए कपड़े, ऊल जलूल और फूहड़ कपड़े,  साधारण प्रकार के कपड़ो की तुलना में कई गुना महंगे होते हुए भी युवा वर्ग के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं । फिल्म, टीवी सीरियल्स, सोशल मीडिया भी कपड़ों की मार्केटिंग का माध्यम बन गए हैं । स्त्री व युवा वर्ग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं ।

हमारे पूर्वजों के पास सीमित मात्रा में कपड़े होते थे और वो उन्हीं को धारण कर प्रसन्नचित रहते थे । न अनेकों जोड़ी कपड़ों से विशेष कपड़े चयन करने की झंझट, न कपड़ों को लेकर दिमाग में कोई बोझा । उनकी अलमारी में केवल कुछ जोड़ी धोती, कुर्ता, पजामा इत्यादि वस्त्र होते थे वो भी सफेद रंग के साधारण सूती वस्त्र । स्त्रियों के पास भी सीमित मात्रा में गोटा किनारी की साड़ियां होती थी । उनका जीवन, सरल, सादा, सुंदर, उत्तम व फिजूल के तनावों से मुक्त था ।

आवश्यकता है अपनी कपड़ों की अलमारियों में एक बार झांकने की । हम पाएंगे की वहां कई कपड़े ऐसे हैं जिनको हमने या तो कभी कभार ही पहना होगा या फिर छुआ तक नहीं होगा और वो न जाने कितने समय से हमारी अलमारी में जगह घेरे हुए हैं ।

जरूरत है मंथन करने की, कि कितने जोड़ी कपड़े आपके लिए काफ़ी हैं । अगर हम इसमें सीमा रेखा खींच पाए तो इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ेगा ही ना की कम होगा । हमें वो कपड़े पहनने चाहिए जो हमारे लिए आरामदायक हों, हमें आनंद दें, हमें प्रफ्फुलित करें, हमारे व्यक्तित्व को निखारे और हमारे मन को भाए । दूसरों के प्रभाव में ऊल जूलूल कपड़े पहनने से किसी विशेष लाभ की संभावनाएं बहुत कम हैं । पसंदीदा कपड़ों का इस्तेमाल कर उनका भरपूर आनंद लें भविष्य में इस्तेमाल के चक्कर में न पड़ें ।  कपड़ों को एक बार पहन कर फेंक देने में भी कतई समझदारी नहीं हैं । किसी भी चीज़ का उपयोग करें न कि दुरुपयोग ।

याद रहे आवश्यकता की पूर्ति नितांत जरूरी है लेकिन इच्छा का कोई अंत नहीं है । कपड़े कम जमा करें, आवश्यकता अनुसार जमा करें ।

।। हरी ॐ ।।
जगदीश गुप्ता (05/05/2024)

पल

यह पल जो निकल जाएंगे, यह वापस नहीं आयेंगे ।
जीलो इन पलों को यारों, यह दिन फिर याद आयेंगे ।।

आज का यह अद्भुत पल, कल भूतकाल बन जाएगा ।
जीलो क्यूंकि यह पल, वापस लौटकर नहीं आएगा।।

उपयोग किया जो पल का, पल कल याद आएगा ।
व्यर्थ में गंवाया जो तो, पल कल को बहुत सताएगा ।।

पल-पल में बंधा यह जीवन, सांसे आनी जानी है ।
रेत सा रीतता हर क्षण, हर पल की यही कहानी है ।।

चिरकाल से चलता आया, पल-पल से युग बीते हैं ।
कालचक्र ने सबको रौंदा, कुछ हारे कुछ जीते हैं ।।

पल है जीवन की पूंजी, पल जीवन का ज्ञान है ।
पल में जीरो पल में हीरो, पल बहुत बलवान है ।।

महत्व पलों का जिसने जाना,वही सफल हो पाया है ।
जीवन की पगडंडी पर चलकर,उसने नाम कमाया है ।।

फैसले पल-पल के, व्यक्ति के जीवन की पहचान है ।
सच्चे फैसलों से पहचान बनाता, वही इंसान महान है ।।

पल में खुशी, पल में गम, पलों की महिमा न्यारी है।
पल-पल से ही जीवन बनता, खेल पलों का जारी है ।।

पल-पल जीवन बीत रहा है, पलों का उपयोग करो ।
नाचो, गाओ, खेलो, कूदो, पलों का सदुपयोग करो ।।

नियत पलों का यह जीवन,एक दिन ख़त्म हो जाएगा ।
प्यार बांट लो, पुण्य कमा लो, वही साथ में जाएगा ।।

।। हरी ॐ।।
जगदीश गुप्ता (24/03/2024)

जीवन जीना सीख लिया है

बदलते परिवेश में मैंने, जीवन जीना सीख लिया है।
नए माहौल में मैंने, समझौता करना सीख लिया है।।

भीड़ भरे इस शहर में मैंने, अकेले में जीना सीख लिया है ।
रिश्ते तोड़कर मैंने, खुद से रिश्ते जोड़ना सीख लिया है ।।

बिना बोल बोले ही अब मैंने, बातें करना सीख लिया है ।
आभासी दुनियां में मैंने, हंसना-मुस्कराना सीख लिया है।।

तन्हाई से डर नहीं लगता, सन्नाटे में जीना सीख लिया है।
बिना साथी के भी अब मैंने, खिलखिलाना सीख लिया है ।। 

खाली सूने घर में मैंने, अब आना-जाना सीख लिया है ।
अगल-बगल में कौन लोग है, नहीं जानना सीख लिया है ।।

फोन,लैपटॉप,टीवी संग, समय बिताना सीख लिया है ।
आधुनिक समाज में मैंने, बुत बन जाना सीख लिया है ।।

बासी खाना, ठंडा पानी, खड़े-खड़े खाना सीख लिया है ।
बिन सूर्योदय, सूर्यास्त देखे, दिन बिताना सीख लिया है ।।

घर के अंदर ही अब मैंने, सैर-सपाटा सीख लिया है ।
मास्क पहनकर दिनभर मैंने, सांसें लेना सीख लिया है ।।

प्राकृतिक सौंदर्य दर्शन, स्क्रीन पर करना सीख लिया है ।
बाहरी दुनियां का आनंद, घर में बैठे लेना सीख लिया है ।।

त्यौहारों को अब मैंने, मोबाईल में मनाना सीख लिया है ।
बिना बात के ही अब मैंने, शौर मचाना सीख लिया है ।।

चारदीवारी के भीतर मैंने, भीतों से बतियाना सीख लिया है ।
अपने ही कंधे पर अपना सिर, रखकर रोना सीख लिया है ।।

नहीं जरूरत मुझे किसी की, मैंने हंसना सीख लिया है ।
बिन समाज के e-समाज में, मैंने e-life जीना सीख लिया है ।।

।। हरि ॐ ।।
जगदीश गुप्ता (07/01/2024)

रोम रोम में राम

राम है जीवन, राम प्राण है, राम जगत का स्वामी है।
राम नित्य है, राम सत्य है, राम चेतन अंतर्यामी है ।। 

राम है संस्कृति देश की, हर दिल में राम समाया है ।
रोम रोम में राम बसा है, सब राम नाम की माया है ।। 

मर्यादा की मूरत राम, राम धर्म-धैर्य का सागर है ।
कोशल्या-दशरथ-रघु नंदन, राम प्रेम की गागर है ।। 

राम भक्ति है, राम शक्ति है, राम में ब्रह्म समाया है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने, रामराज्य सिखलाया है ।। 

राम दयालु, राम कृपालु, राम जीवन की परिभाषा है ।
राम त्याग है, राम तपस्वी, राम जीने की अभिलाषा है ।। 

मानव मूल्यों की परकाष्ठा, राम जीवन रस का प्याला है । 
राम समर्पण, राम है दर्शन, राम सुंदर रूप निराला है।। 

सम्पूर्ण विश्व का प्यारा राम, राम परम सुखदाई है ।
राम दिव्य है, राम प्रेरणा, सियारामचंद्र रघुराई है ।। 

राम दुलारा, सबका प्यारा, सनातन धर्म की ढाल है। 
राम रक्षक है सकल सृष्ठि का, राम अधर्म का काल है ।। 

राम बिना अस्तित्व नहीं है, राम ही जीवन सार है ।
राम ही है मूल धर्म का, संस्कृति का आधार है ।। 

राम नाम को भज ले बंदे, राम ही तारणहार है ।
रोम रोम में राम बसा है, राम की महिमा अपरंपार है।। 

।। हरी ॐ।।
जगदीश गुप्ता (25/12/2023)

मन की अभिलाषा

हसरत है जीवन बंधन तोड़, मैं स्वतंत्र हो जाऊं।
लोक-लाज संकोच छोड़ मैं, सबको गले लगाऊं ।।

परिंदों की तरह उडूं मैं, देश विदेश तक जाऊं ।
सारी दुनियां की सैर करूं, लोगों से बतियाऊं ।।

आसमान के तारे छुलूँ, मैं ख्वाबों में खो जाऊं ।
पशु पक्षियों से करूं बात, प्रकृतिमय हो जाऊं ।।

समुद्र में गोत लगाऊँ, नीली दुनियां में खो जाऊं ।
घने वनों में घूम-घूम कर, जीवों संग नाचूं गाऊं ।।

फिर से छोटा बच्चा बन, मां की गोद में सो जाऊं।
खेलूं-कुदूं, भागूं-दौडूं, सारे बन्धन मुक्त हो जाऊं ।।

साहित्य सब पढूं जगत का, अपना ज्ञान बढ़ाऊं।
धर्म शास्त्रों के गूढ़ ज्ञान से, शान्ति चुन कर लाऊं ।।

प्रकृति के रहस्य खोज, जीवन गुत्थी को सुलझाऊं।
मैं ब्रह्मांड की गहराईयों से, सत्य खोज कर लाऊं ।।

शांतिदूत बनकर मैं, विश्व को शांति पाठ पढ़ाऊं ।
सारी दुनियां में धर्म ध्वजा का, परचम मैं लहराऊं ।।

मैं  मलहम-मरहम बनकर, दिल के घाव मिटाऊँ ।
उदास चेहरों को मुस्कान दे, ऐसे गीत सुनाऊं ।।

जीवन यात्रा में साथी बन, सबके काम मैं आऊं ।
हर दिल में एक दिया जलाकर, मैं प्रकाश फैलाऊं ।।

।। हरी ॐ।।
जगदीश गुप्ता (31/12/2023)

किस को गीत सुनाऊं

मैं दिल के जख्मों को, शब्दों से सहलाता हूं ।
घायल मन को राहत दे, मैं उन गीतों को गाता हूं ।।

कोशिश करता हूं, मैं कंकर से शंकर रूप बनाने की ।
सागरतल की गहराई से,  मोती चुन कर लाने की ।।

हसरत है दिल के जख्मों को, शब्दों से सजाऊँ ।
दिल के टूटे टुकड़ों को चुन, नई तस्वीर बनाऊँ ।।

जी करता है सबको सत्य का दर्पण मैं दिखलाऊं ।
इस समाज में जान फूंक दे, वो अमृत गीत सुनाऊं ।।

किंतु सबको भाए वो, शबरी के बैर कहां से लाऊं ।
भाव शून्य इस बस्ती में, मैं भावों से किसे रिझाऊं ।।

वो वाह वाह कहने वाले, रचना सुनकर रोने वाले ।
भाव विभोर हो दिल की, गहराइयों में खोने वाले ।।

वो श्रोता अब अनजान बने, जैसे न कोई नाता हो ।
लगता है जैसे कोई अंधा, बहरों को गीत सुनाता हो ।।

आपा धापी की दुनियां में, सब अनजाने चेहरे हैं ।
संवेदनहीन इस बस्ती में, जैसे सब गूंगे बहरे हैं ।।

कुछ सपनों में डूबे हैं, कुछ सुख में दुख तलाश रहे ।
कुछ गुमनामी में जीकर, इस वैतरणी को पार रहे ।।

सत्य की यहां कद्र नहीं, असत्य सबको प्यारा है ।
संबंधों  की गुम हुई रोशनी, फैला घना अंधियारा है ।।

दिल चाहता है शब्द भेंटकर, मैं उजियारा फैलाऊं ।
मां शारदे की कृपादृष्टि से, हर दिल के अंदर जाऊं ।।

किंतु किसके लिए लिखूं मैं, किस के लिए मैं गाऊं।
पाषाणौ के बीच खड़ा मैं, किस को गीत सुनाऊं ।।

।। हरी ॐ ।।
जगदीश गुप्ता (17/12/2023)

लौटा दो वो दीवाली

दीपावली के पावन पर्व पर, दिल में उमंग है।
उत्साह है, उल्लास है, छाया उत्सव का रंग है ।।

दीपों से जगमग आंगन, खुशियों का त्यौहार है ।
प्रकाश के इस पावन पर्व की, महिमा अपरंपार है ।।

छोटे-बड़े हों या नर-नारी सब आज प्रफुल्लित हैं ।
हर जन खुशियों से,  हर्षित और प्रसन्नचित हैं ।।

उजियारा फैलाने वाला, दीवाली अद्भुत पर्व है ।
खुशियों के इस त्यौहार पर हम सभी को गर्व है ।।

बचपन  की दीवाली का वो दौर याद आता है ।
पापड़ी, खुरमे, पुए का स्वाद अब भी भाता है ।।

लिपाई, पुताई, सफाई, हीड और दीवानी याद हैं ।
बैल, गौवर्धन,लक्ष्मी पूजन के पावन पल याद हैं ।।

गायों-बैलों को नहाना-धुलाना और सजाना याद हैं।
दीपावली की लंबी छुट्टी का वो जमाना याद हैं ।।

सादगी,उल्लास,उमंग,जोश से आनंद में खो जाते थे । 
बच्चों बुर्जुगों संग मिलजुल, दीवाली खूब मनाते थे ।।

एकाकी जीवनशैली ने, अब हम सबको घेरा है ।
दीप बाहर जले हैं लेकिन, मन में घना अंधेरा है ।।

बड़ों ने साथ छोड़ दिया, बच्चे भी घर छोड़ गए ।
खुश तो हैं सब किंतु, खुशीयों से नाता तोड गए ।।

खुशियां का बाजार सजा है, रंग बिरंगी चीजों से ।
घर सजता है लेकिन बुर्जुगों,बच्चों की उम्मीदों से ।।

बिन बच्चों की मस्ती के, रौनक कहां से लाओगे ।
बुर्जुगों के आशिर्वाद बगैर, कैसे दीवाली मनाओगे ।।

खुशियां हो सकती है, लेकिन हर्ष कहीं अधूरा है ।
बिन अपनों के दीपावली का, त्यौहार नहीं पूरा है ।।

सूनी है, शाश्वत नहीं है, फीकी है यह दीवाली।
व्हाट्सएप के संदेशों वाली नकली है यह दीवाली।।

बचपन की खुशियों वाली, वापस ला दो दीवाली।
अपनों संग खुशियों वाली, कोई लौटा दो दीवाली।।

।। हरि ॐ।।
जगदीश गुप्ता (12/11/2023)

भूख

मानव सभ्यता के शुरू से ही मानव मात्र की भूख निरंतर चली आ रही है। एक यैसी भूख जो कभी मिटती ही नहीं है । भूख मानव के स्वभाव का एक अहम हिस्सा है । तन की, मन की, सुख सुविधाओं की, दौलत की, शौहरत की, दिखावे की, स्वतंत्रता की ओर और भी न जाने कौन कौन सी भूख से मानव सभ्यता सदियों से प्रभावित रही है । सभ्यता के विकास के मूल में भूख छिपी है । सदियों से चली आ रही मानव मन की यह भूख सही है या गलत कहना मुश्किल है। एक तरफ तो यह सत्य है कि यदि मानव स्वभाव में भूख नहीं होती तो विकास का जो स्वरूप आज हमें दिखाई पड़ रहा है वैसा शायद नहीं दिखाई देता क्योंकि अगर भूख की ज्वाला नहीं होती तो इंसान जो है जैसा है उसी में संतुष्ट रहता और सभ्यता के विकास में उसका कोई खास योगदान नहीं होता । अगर भूख नहीं होती तो मात्र कालचक्र का पहिया घूमता रहता, मानव पीढियां आती जाती रहती लेकिन मानव सभ्यता में कोई खास परिवर्तन देखने को शायद नहीं मिलता । 

सभ्यता के विकास के लिए भूख होना जरूरी है और शायद इसीलिए ईश्वर ने मानव के स्वभाव में कभी न मिटने वाली भूख को डाल दिया है । साइकिल वाले को मोटरसाइकिल की भूख, मोटरसाइकिल वाले को कार की भूख, कार वाले को लक्जरी कार की भूख, लक्जरी कार वाले को व्यक्तिगत लक्जरी कारों/ जहाजों/ उड़न खटोलों की भूख …जीवन पर्यन्त चलने वाली अनवरत भूख । भूख का यह स्वरूप इकाई से अनंत तक देखने को मिलता है । चाहे इंसान हो या परिवार या समाज या राष्ट्र , सभी इस भूख के शिकार हैं । 

भूख का होना जायज़ है लेकिन जब भूख की हदें पार हो जाती है तो वो इंसान / परिवार/ समाज के लिए घातक सिद्ध होती है । संसार में बहुत कम ही लोग मिलेंगे जिनको उनकी आवश्यकता के मुताबिक जो मिला है जितना मिला है उसमें संतुष्ट हों । अधिकतर या यूं कहिए की संपूर्ण मानव समाज इस अनवरत भूख की ज्वाला में जल रहा है । झोपड़ी वाला, कच्चे घर के, कच्चे घर वाला पक्के घर के, पक्के घर वाला बड़े घर के और बड़े घर वाला महलों के सपने देखने में ही जीवन व्यतित कर देता है । भूख यदि दूसरों के या समाज की हित में हो तो वो जायज है लेकिन भूख यदि व्यक्तिगत एवं स्वार्थपूर्ण हो तो वो समाज के लिए हानिकारक हो जाती है । इंसान की यह भौतिकवादी सांसारिक भूख उसके तमाम दुखों का कारण है। चाहे वो व्यक्ति की पद/ प्रतिष्ठा/ धन संपदा/ व्यापार हो, समाज हो, मत/पंत/संप्रदाय हो, देश हो या महाद्वीप सबको फैलाव की भूख है । और इस फैलाव की भूख में इंसान अंधा हो जाता है और उसके लिए नैतिकता, मानवता, मानव मूल्य जैसे शब्दों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है । उसके लिए अहम हो जाती है भूख, एक विकराल भूख जो न तो कभी भरती है ना ही उसकी कोई सीमा ही होती हैं वो उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती है ।  ज्यादा से ज्यादा, अच्छे से अच्छा, अधिक से अधिक, उत्तम से उत्तम,  संग्रहण/ ग्रहण/संचय की भूख की दौड़ में ही इंसान जीवन का अहम हिस्सा व्यतित कर देता है । 

घोर कलयुग में भौतिकवादी सांसारिक भूख का जोर चरम पर है । भूख के ताप की इस तृष्णा में हर कोई जल रहा है । भूख के इस प्रभाव में मानव मन ने अपना असल स्वभाव अपनी शान्ति/ सकून/ चैन / संतोष खो दिया है । हर कोई अपनी ज़िंदगी का अहम समय केवल और केवल मायावी भूख की इस आग को बुझाने के निरर्थक प्रयास में ही बर्बाद कर रहा है । भूख की इस आग के वशीभूत हो इंसान इस भूलोक का आनंद लेना ही भूल गया है ।  

भूख हमारा स्वभाव है । भूख होना जरूरी भी है लेकिन भौतिकवादी सांसारिक भूख की एक सीमा रेखा होना जरूरी है । इस समय और ऊर्जा का उपयोग यदि इन्सान / समाज/ राष्ट्र अपनी आध्यात्मिक भूख को बढ़ावा देने में करें तो उससे शान्ति/ चैन/ सकून/ संतोष पाया जा सकता है । 

समय सीमित है । सांसारिक भूख को बढ़ावा देना है या आध्यात्मिक भूख को, फैसला जितना जल्दी करें उतना अच्छा होगा । 

।। हरी ॐ ।।

जगदीश गुप्ता (22/10/2023)

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रायपुर में एक वर्ष

आज से ठीक एक वर्ष पूर्व यानी की दिनांक 25/09/2022 को मैं एनटीपीसी खरगोन परियोजना से स्थानांतरित होकर रायपुर पहुंचा था । अगले दिन यानी की सोमवार को मैंने एनटीपीसी पश्चिमी क्षेत्रीय मुख्यालय रायपुर ऑफिस में ज्वाइन किया । 

ऑफिस भवन नवा रायपुर के सेक्टर 24 में शांत जगह पर स्थित है । चारों तरफ़ हरियाली व शांति । बाहर निकलने पर चाय की थड़ी भी नहीं मिलेगी । रायपुर शहर की भीड़ भाड़, शौर शराबे व चकाचौंध से करीब 15/20 किलोमीटर दूर प्रकृति व जंगल की गोद में बसा नवा रायपुर एक बहुत ही शांत, सुंदर, वन संपदा से भरपूर प्रदूषण मुक्त शहर है । यहां चारों और चौड़ी चौड़ी सड़कें, बड़े बड़े चौराहे, शुद्ध पानी के तालाब  एवं हरियाली ही हरियाली नज़र आती है । सुनसान सड़कों पर यदा कदा ही कोई वाहन नज़र आता है । प्रकृति प्रेमी स्वभाव होने की वजह से शांत सुंदर जगह पर आकर अच्छा लगा ।  

आते ही घर की तलाश में लग गए । ऑफिस से करीब 6/7 किलोमीटर पर स्थित दो सोसाइटीज में खाली घर की तलाश शुरू की । पसंद के खाली मकान की उपलब्धता नहीं होने की वजह से थोड़ी सी परेशानी हुई लेकिन जानकारों की मदद से खोज जारी रही और अंत में अविनाश न्यू काउंटी में एक घर पसंद आया जो की १५/२० दिन बाद खाली होने वाला था ।  उसी के हिसाब से खरगौन से घरेलू सामान शिफ्ट करने की प्लानिंग की और दीपावाली से ठीक पहले किराए के नए घर में प्रवेश किया ।

शांति का आलम इतना की एक दिन जब हम पास ही स्थित मिराज सिनेमा घर में मूवी देखने गए तो पूरे सिनेमा हाल में हमें मिलाकर कुल 5 ही व्यक्ति थे । समय के साथ-साथ हमने यहां के स्थानीय स्थानों के साथ साथ आसपास के दर्शनीय/ धार्मिक स्थलों जैसे की जगन्नाथ पुरी, अमरकंटक, रतनपुर महामाया, डोंगरगढ, घटारानी, राजिम, चंपारण, सिरपुर, कान्हा नेशनल पार्क, भोरमदेव, केवल्याधाम, बूढ़ा तालाब, कौशल्या माता मंदिर इत्यादि स्थानों का भरपूर आनंद लिया ।

पिछले एक वर्ष का निचोड़ निकालें तो उसमें हमारा “स्वास्थ व भ्रमण” को दिया समय अहमियत रखता है । “हेल्थ इज वेल्थ” को दृष्टि में रखते हुए हमने नियमित सवेरे/ सांय घूमने पर जोर दिया साथ ही जब जहां मौका मिला आस-पास के दार्शनिक स्थानों का आनंद लेते रहे । 

बीते एक वर्ष में एनटीपीसी की दो बड़ी सालाना इवेंट्स, एक अंतर्राष्ट्रीय पावर सेक्टर कॉन्फ्रेंस एवं दूसरी आईटी विभागाध्यक्षों की कॉन्फ्रेंस, के रायपुर में आयोजन का सुनहरा मौका भी मिला । 

चलते रहना समय की प्रकृति है । एक वर्ष कब निकल गया कुछ खबर ही नहीं लगी । काल का यह पहिया निरंतर आगे बढ़ता रहता है । समय की रेखा पर निशान छोड़ना ही जीवन है । इन्हीं छोटी छोटी यादों से ही जीवन का निर्माण होता है । वर्तमान का सदुपयोग एक सुखद भूत एवं अच्छे भविष्य को जन्म देता है । झरोखे से झांकती पिछले एक वर्ष की यादें, मिश्रित अनुभूति के साथ-साथ आगे आने वाले समय के सदुपयोग से एक अच्छे भविष्य निर्माण के लिए भी प्रेरणा देती है । 

।। हरी ॐ।।

जगदीश गुप्ता (२५/०९/२०२३)

प्यारे बापू…

10 सितंबर 2023 को सवेरे G20 देशों के राष्ट्राध्यक्ष जब भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राजघाट पर बापू की समाधि पर पुष्पांजलि के लिए एकत्र हुए, उस वक्त प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मन में कई भाव उठ रहे होंगे । मन में उठ रहे कुछ भावों को कलमबद्ध करने का मेरा एक छोटा सा प्रयास …..

प्यारे बापू उठो, आंखे खोलो, देखो कौन आया है।
तुम्हारी समाधि पर देखो,आज सारा विश्व समाया है।।

दिग्गज देशों के आगमन से, तेरा आंगन हर्षाया है ।
पुष्प भेंट कर तेरे चरणों में, सबने शीश नवाया है।।

देखो बापू धर्म ध्वजा का परचम आज लहराया है।
सत्य की जीत हुई है और असत्य आज घबराया है।।

महाशक्ति के नेताओं ने अनोखा इतिहास रचाया है।
भारत माता के चरणों में, सबने शीश झुकाया है ।।

उठो प्यारे बापू आंखे खोलो, देखो कौन आया है ।
मां भारती का बेटा, देखो किनको लेकर आया है।।

तेरे बेटे ने बापू विश्व में एकता का बिगुल बजाया है।
एक धरती,परिवार,भविष्य का पावन पाठ पढ़ाया है।।

वसुधैव कुटुंबकम् के मंत्र से, देश का मान बढ़ाया है।
विश्वशांति की अलख जगा, तेरा संकल्प दोहराया है ।।

सकल विश्व में सनातन का, शंखनाद आज गूंज रहा।
भारत मां का जन जन आज, रोमांच गर्व से झूम रहा ।।

सत्य की विजय देख, बापू तुम फूले नहीं समाओगे ।
भारत माता को आज शीर्ष पर, देख बहुत हर्षाओगे ।।

भारत की यह विजय पताका, तेरे चरणों में अर्पित है।
प्रेम, शांति की यह पावन बेला, बापू तुम्हें समर्पित है ।।

विश्व विजय की शुभ बेला में, बापू कुछ ना अन्य करो।
उठो बापू , दृश्य देख लो, आशीर्वाद देकर धन्य करो ।।

।। हरी ॐ।।
जगदीश गुप्ता (10/09/2023)
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