जैसे ही इंसान संसार में आता है उसके तन को ढकने के लिए कपड़ों की आवश्यकता पड़ती है । उसको कपड़ों से ढक दिया जाता है और फिर शुरू होता है कपड़ों का एक लंबा सिलसिला जो उसके संसार में आने से लेकर जाने तक लगातार उसके साथ रहता है। कपड़े हमारी जिंदगी की एक अहम आवश्यकता हैं । यह सच है की हर इंसान को वो चाहे अमीर हो या गरीब, चाहे स्त्री हो, पुरुष हो, बालक हो बुजुर्ग हो सभी को तन ढकने के लिए कपड़ों की आवश्यकता होती है ।
गरीब के पास कम कपड़े हो सकते हैं लेकिन जैसे जैसे गरीब अमीरी की और बढ़ता है उसके कपड़ों की संख्या बढ़ती चली जाती है । अमूमन अमीरों के पास आवश्यकता से कहीं ज्यादा कपड़े होते हैं । घर के कपड़े, पार्टी के कपड़े, ऑफिस के कपड़े, शादी-ब्याह, उत्सव के कपड़े, न जाने किस किसके कितने कपड़े । इंसान की सुंदर और प्रभावी दिखने की इच्छा के कारण उसे नित नए वस्त्रों की तलाश होती है और यह इच्छा महिलाओं के केस में ज्यादा प्रभावी होती है । बाजार तरह तरह के कपड़ों से अटे पड़े हैं । हर रंग के, हर डिजाइन के, हर गुणवत्ता के, हर मौसम के, बच्चों के, बड़ों के, अंदर के, बाहर के, सस्ते, महंगे, नाना प्रकार के कपड़ों के बाज़ार सजे पड़े हैं ।
आम से लेकर खास तक अमूमन सब के पास अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक घरों में कपड़ों के ढेर लगे हुए हैं । बॉलीवुड स्टार्स और दूसरे सेलिब्रिटीज के पास उपलब्ध कपड़ों का अनुमान लगाना मुश्किल है । वो शायद ही एक बार पहने हुए कपड़ों को दुबारा इस्तेमाल करते होंगे और कई तो ऐसे होंगे जिनके पास हर दिन/अवसर का एक नया कपड़ा होता होगा ।
घरों में देखा जाए तो अलमारियों में कपड़े ही कपड़े भरे होते हैं । इस तरह के कपड़े, उस तरह के कपड़े, हर रंग के कपड़े, रेशमी-सूती- ऊनी कपड़े, अलग-अलग अवसर के, हर सदस्य के न जाने कितने कपड़े । अलमारियां, संदूकें कपड़ों से अटे पड़े हैं लेकिन फिर भी यह समस्या आम है की कपड़े नहीं हैं । जब भी कहीं आना जाना हो तो जेहन में सबसे पहले कपड़ों का ही ख्याल आता है । अमूमन लोगों को कपड़ों की हमेशा कमी महसूस होती है । हर किसी को लगता है की उसके पास कपड़ा नहीं है और वो जिंदगी भर कपड़ों के पीछे दौड़ता रहता है हर बार वह नया कपड़ा खरीदना है उसको लगता है की बहुत अच्छा कपड़ा है लेकिन फिर थोड़े दिनों बाद में उसको लगता है कि नहीं यह नहीं है इससे अच्छा कपड़ा मेरे को चाहिए । अच्छे और सुंदर कपड़ों की इसी मृगतृष्णा में इंसान जिंदगी भर अंधी दौड़ दौड़ाता रहता है ।
अवसर के हिसाब से कपड़ा पहनाना आजकल का रिवाज़ है । शादियों में भी हल्दी के, मेहंदी के, बारात के और थीम आधारित कपड़ों का चलन हो गया है । ऐसा नहीं कि यह समस्या सिर्फ मध्यम वर्ग ही महसूस करता है वरन बड़े बड़े अमीर या उच्च वर्ग के लोग व सेलिब्रिटीज भी इस समस्या से ग्रस्त हैं । कपड़ों की समस्या एक बड़ी गंभीर समस्या है जिससे हर कोई प्रभावित है । परिवार में कब क्या पहनाना है क्या नहीं, किसको क्या जचंता है क्या नहीं, किसको क्या पसंद है क्या नहीं, यह भी एक गंभीर मनन का विषय होता है और कभी कभी दिखावे की होड़ में यह सामाजिक/ पारिवारिक विवाद व मानसिक क्लेश का कारण भी बन जाता है ।
इस विषय की गंभीरता अमीरों व सेलिब्रिटीज में ज्यादा होती है उनको तो यह काम महंगे ड्रेस डिजाइनर्स पर छोड़ना पड़ता है ताकि कपड़ों के चुनाव में कहीं कोई कमी ना रह जाए ।
कपड़ों के पीछे सारा संसार दीवाना है । नाना भांति के कपड़े होते हुए भी किसी को संतोष नहीं है। नया से नया, बढ़िया से बढ़िया की चाह कभी समाप्त नहीं होती और जीवन पर्यन्त चलती रही है । स्त्रियां इस असंतोष से ज्यादा ग्रसित रहती हैं । जहां पुरुषों के लिए वस्त्रों की चॉइस सीमित हैं वहीं स्त्रियों के लिए ऑप्शंस असीमित। दिखावे व दूसरों से तुलना के चलते यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
आर्थिक विकास के साथ यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। बाजार में विभिन्न प्रकार के कपड़ों की बाढ़ सी आ गई है । कम से कम तन को ढकने वाले कपड़े, फटे हुए कपड़े, ऊल जलूल और फूहड़ कपड़े, साधारण प्रकार के कपड़ो की तुलना में कई गुना महंगे होते हुए भी युवा वर्ग के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं । फिल्म, टीवी सीरियल्स, सोशल मीडिया भी कपड़ों की मार्केटिंग का माध्यम बन गए हैं । स्त्री व युवा वर्ग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं ।
हमारे पूर्वजों के पास सीमित मात्रा में कपड़े होते थे और वो उन्हीं को धारण कर प्रसन्नचित रहते थे । न अनेकों जोड़ी कपड़ों से विशेष कपड़े चयन करने की झंझट, न कपड़ों को लेकर दिमाग में कोई बोझा । उनकी अलमारी में केवल कुछ जोड़ी धोती, कुर्ता, पजामा इत्यादि वस्त्र होते थे वो भी सफेद रंग के साधारण सूती वस्त्र । स्त्रियों के पास भी सीमित मात्रा में गोटा किनारी की साड़ियां होती थी । उनका जीवन, सरल, सादा, सुंदर, उत्तम व फिजूल के तनावों से मुक्त था ।
आवश्यकता है अपनी कपड़ों की अलमारियों में एक बार झांकने की । हम पाएंगे की वहां कई कपड़े ऐसे हैं जिनको हमने या तो कभी कभार ही पहना होगा या फिर छुआ तक नहीं होगा और वो न जाने कितने समय से हमारी अलमारी में जगह घेरे हुए हैं ।
जरूरत है मंथन करने की, कि कितने जोड़ी कपड़े आपके लिए काफ़ी हैं । अगर हम इसमें सीमा रेखा खींच पाए तो इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ेगा ही ना की कम होगा । हमें वो कपड़े पहनने चाहिए जो हमारे लिए आरामदायक हों, हमें आनंद दें, हमें प्रफ्फुलित करें, हमारे व्यक्तित्व को निखारे और हमारे मन को भाए । दूसरों के प्रभाव में ऊल जूलूल कपड़े पहनने से किसी विशेष लाभ की संभावनाएं बहुत कम हैं । पसंदीदा कपड़ों का इस्तेमाल कर उनका भरपूर आनंद लें भविष्य में इस्तेमाल के चक्कर में न पड़ें । कपड़ों को एक बार पहन कर फेंक देने में भी कतई समझदारी नहीं हैं । किसी भी चीज़ का उपयोग करें न कि दुरुपयोग ।
याद रहे आवश्यकता की पूर्ति नितांत जरूरी है लेकिन इच्छा का कोई अंत नहीं है । कपड़े कम जमा करें, आवश्यकता अनुसार जमा करें ।
।। हरी ॐ ।।
जगदीश गुप्ता (05/05/2024)